वैष्णव समाज का संगठनात्मक इतिहास बहुत पुराना है लगभग आज से 100 वर्ष पूर्व यानि कि सन् 1900 के प्रारम्भ से ही भारत वर्ष में अल्प संख्य में होते हुए भी वैष्णव बन्धु जो कि साद (साध),
साधू, सन्त, स्वामी, वैरागी, बाबा, आचार्य इत्यादि जाति के रूप में विभिन्न राज्यों में पहचाने जाते है, उनमें संगठित होने की भावना दिन प्रतिदिन प्रबल होती गई और बिना किसी इस बात के कि कौन क्य
ा कहलाना चाहता है (जैसे साद, साधू, सन्त, स्वामी, वैरागी, बाबा, आचार्य इत्यादि), बार-बार अलग-अलग राज्यों और स्थानों पर इक्कठे होकर तथा अलग-अलग नाम से संगठन बनाते रहे और
संगठित होने का प्रयास करते रहे । वैष्णव समाज के लोगों द्वारा संगठित होने के प्रयासों के सम्बन्ध में वैष्णव वेबसाईट को जितनी और जहां से जानकारी उपलब्ध हुई उसको संक्षिप्त में लेकिन सार रूप
में वैष्णव समाज के लोगों को दिये जाने का प्रयास किया जा रहा है । इसमें भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली जिसे कि प्रथम राष्ट्रीय स्तर के वैष्णव समाज के संगठन होने का गौरव प्राप्त है, उसके
1 व 2 अक्टूबर 1996 को श्री बासुराम लखानी कम्युनिटी सेन्टर, सेक्टर 2, एन.आई.टी. फरीदाबाद में आयोजित संघ के स्थापना दिवस समारोह, रजत जयन्ति सम्मेलन एवं वैष्णव प्रगतिषील मंच
प्रतिनिधि सम्मेलन के दौरान भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली द्वारा प्रकाषित स्मारिका में वैष्णव समाज के संगठनात्मक इतिहास के बारे में जो जानकारी लेखक श्री नत्थीलाल जी शर्मा ग्राम झंडीपुर
पोस्ट फरह, मथुरा (उ.प्र.) ने प्रस्तुत की है उसका सहारा वैष्णव वेबसाईट ने वैष्णव समाज के संगठनात्मक इतिहास के सन्दर्भ में लिया है । इस स्मारिका के प्रकाषन की जिम्मेदारी श्री ब्रजमोहन शर्मा
संयुक्त सचिव एवं डाॅ क्षेमचन्द शर्मा कोषाध्यक्ष भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली ने क्रमषः सम्पादक एवं संयोजक के रूप में बखूबी निबाई है इसी स्मारिका से वैष्णव समाज के संगठनात्मक इतिहास के
अनुसार सर्वप्रथम वर्ष 1917, में अजमेर में वैराग्य कुल भूषण सभा का गठन हुआ । 1925 में इन्दौर में ‘‘वैराग्य धर्मोन्नति सभा‘‘ बनी । 1925 में अजमेर सभा ने ‘‘ मुनि कुल तथा श्री वैराग्य कुल
धर्म प्रकाष‘‘ नामक जाति पत्र का मासिक प्रकाषन प्रारम्भ किया । सम्पादक श्री नरसिंह दास अग्रावत को कुछ महीनों में ही कठिनाईयों के कारण बन्द कर देना पड़ा । 10-12 जून 1927 में अजमेर
सभा का नौवां वार्षिक अधिवेषन मा. चतुर्भुज जी की अध्यक्षता में भव्य जुलूस के साथ सम्पन्न हुआ तथा ‘‘ पुष्कर में समाज की धर्मषाला व मन्दिर हेतु एक स्थान वर्ष 1928 में क्रय किया जिस पर
2 कमरे व एक मन्दिर बनाया गया । वर्ष 1937 में बीकानेर सभा श्री रामदास जी की अध्यक्षता में बनी जिसके पं0 नेमचन्द्र जी मंत्री रहे । सभा ने 125 वर्गगज जमीन लेकर सभा स्थल बनाया ।
वर्ष 1939 में श्री नानग राम जी बूढपुर (रेवाड़ी) अजमेर सभा के सम्पर्क में आये और प्रभावित होकर दिल्ली में ‘‘गैर सरपस्ती वैरागी सुधारक महासभा‘‘ की स्थापना की । महासभा ने
मासिक -पत्र वैरागी‘‘ का 10 नवम्बर 1939 में प्रकाषन , सम्पादक स्व. रामचन्द्र जी ‘‘पाधा‘‘ के सम्पादन में प्रारम्भ किया । पत्रिका के ‘‘वैरागी‘‘ नाम पर जगह-जगह एतराज हुआ जिसके
फलस्वरूप पत्रिका का दिसम्बर 39 का दुसरा अंक ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण‘‘ नाम से प्रकाषित किया गया तथा महासभा का नाम ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण सभा दिल्ली‘‘ रखा गया । इस महासभा का दुसरा अधिवेषन
वर्ष 1940 के आरम्भ में व्यावर शहर में हुआ जिसमें सभापति पं0 ओंकारदास ने स्व. श्रीनिवास शास्त्री जागूवास (अलवर) को ‘‘ शास्त्र निष्णात्‘‘ की उपाधि से अलंकृत किया गया । कुछ ही महीनों में
इस महासभा ने दिल्ली, उ.प्र. राजस्थान व हरियाणा में अनेक स्थानीय सभाओं का गठन किया । इस महासभा का तीसरा अधिवेषन मथुरा सभा के संयोजन में श्री जैनेष धर्मषाला वृन्दावन में 31 मार्च व 1
अप्रैल 1940 को आयोजित किया गया इस आयोजन में बाबू उदयराम (सभापति सभा मथुरा) पं. रामचन्द्र (मंत्री सभा मथुरा) व मा. नत्थीलाल (संगठन मंत्री सभा मथुरा) ने सक्रिय सहयोग किया । अधिवेषन
के प्रथमसत्र के सभाध्यक्ष पं. भगवान दास जी (महीदपुर-इन्दौर) व दूसरे पत्र के सभाध्यक्ष महंत भूधर किषोर चन्द्र दास, राजा साहेब छुईखदान स्टेट रहे ।
दिल्ली महासभा के इस तीसरे अधिवेषन में तीन प्रमुख निर्णय लिए गए जो इस वैष्णव समाज के लिए मार्गदर्षक व मील के पत्थर की तरह निर्णायक सिद्व हुए । (1) महासभा को अखिल भारतीय स्वरूप
प्रदान कर इसका नाम ‘‘अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण महासभा‘‘ स्वीकृत हुआ । (2) इस अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण महासभा की कार्य कारिणी का चुनाव पूरे भारत वर्ष स्तर पर किया गया तथा
(3) वैष्णव ब्राह्मण जाति उत्पति विषय पर शास्त्रार्थ कराने के लिए शाहदरा- दिल्ली में विद्वत् परिषद की बैठक 10 व 11 अक्टूबर 1940 को बुलाने का निर्णय लिया गया ।
महासभा के गठन में सभापति महन्त भूधर किषोर चन्द्र दास, राजा साहिब (छुई खदान स्टेट), उपसभापति पं. भगवान प्रसाद बकौल (महीदपुर-होल्कर स्टेट), प्रधानमंत्री श्री भगवती प्रसाद शर्मा मथुरा वाले
(प्रैस नई दिल्ली) व कोषाध्यक्ष -ओवर सियर बाबू भुल्लन सिंह मैनपुरी के अतिरिक्त 14 सदस्य विभिन्न प्रदेषों से चुने गए । 10 व 11 अक्टूबर 1940 को शाहदरा विद्वत परिषद की बैठक पं0 टीकमदेव
जी अजमेर की अध्यक्षता में कराने का निर्णय लिया गया लेकिन उन्होंने अपनी अस्वस्थता के कारणी श्रीनिवास शास्त्री (जागूवास-अलवर) से अध्यक्षता कराई ।
विद्वत परिषद के अध्यक्ष ने सभी विद्वानों को जाति उत्पति व जाति नाम के विवादों को सदैव के लिए समाप्त करने हेतु व निर्णय लेने में सहायता के लिए पूरा-पूरा समय अपने-अपने तर्को को प्रस्तुत
करने के लिये दिया । तर्क 2 दिनों तक चलते रहे जिसमें 250 विद्वानों / शास्त्रियों ने भाग लिया जिसमें स्वं. पं0 पुरूषोत्तम (इन्दौर) श्री हरनारायण रामावत (जोधपुर) पं0 टीकमदेव (अजमेर) चंदगीराम
(हरियाणा), गंगादास दिवाकर (अजमेर), श्रीमती मनोरमा बाई (रतलाम), पं0 हरिप्रसाद (कलकता), रामदास (बीकानेर), गोपीदास घमंडी (ब्यावर), कन्हैयालाल (मदाना), मामराज (दिल्ली),
डाॅ भगवत लाल आचार्य (भरूंच), बन्द्रीदास -तोताराम (अल्मोड़ा), मास्टर नत्थीलाल (मथुरा), हरस्वरूप (मेरठ) व घीसूलाल दिवाकर (अजमेर) प्रमुख वक्ता थे, सभी वक्ताओं के तर्को व प्रमाणों के बाद
सभापति ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच घोषणा की हमारी जाति वैष्णव ब्राह्मण है । इस विद्वत् परिषद द्वारा जाति का नाम ‘‘वैष्णव ब्राह्मण‘‘ घोषित करने के बाद लम्बे समय से चले आ रहे नाम
के विवादों को समाप्त कर समाज को 1940 में एक नई दिषा प्रदान की गई। वैष्णव समाज उत्पत्ति गोत्रों पर भी विद्वत् परिषद ने विचार किया । विद्वत परिषद ने उत्पत्ति व गोत्रों से सम्बन्धित एक
अधिकृत पुस्तक प्रकाषन के लिए एक चार सदस्यों की समिति गठित की और पुस्तक का नाम ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण वंष भास्कर‘‘ निष्चित हुआ । अग्रस्त 1941 में यह पुस्तक दिल्ली से प्रकाषित की गई
इसके लेख पं. श्रीनिवास शास्त्री (जागूवास -अलवर) थे । इस पुस्तक की सभी प्रतियां हाथों हाथ बिक गई । वैष्णव ब्राह्मण समाज में इस पुस्तक की बढ़ती मांग को देख कर ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण महासभा
अजमेर‘‘ ने स्व. गंगादास दिवाकर के प्रयासों से ‘‘वैष्णव ब्राह्मण वंष प्रभाकर‘‘ नाम से इस पुस्तक का पुनः प्रकाषन मार्च 1949 में अजमेर से हुआ जो पूर्व प्रकाषित वैष्णव ब्राह्मण वंष प्रभाकर की
कुंजी के रूप में प्रकाषित हुई जिसका मुल्य एक रूपया मात्र रखा गया ।
‘‘ अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण महासभा‘‘ के तत्वाधान में पं. जोतराम जी के प्रयासों द्वारा श्री सोहनलाल मिर्जापुर के आयोजन में 17-18 मई 1941 को पं. नानग राम की अध्यक्षता में बल्लभगढ़
(हरियाणा) में अधिवेषन हुआ जिसमें लगभग 500 सदस्यों ने भाग लिया । इस अधिवेषन में गुड़गाँवा जिले की ‘‘वैष्णव ब्राह्मण सभा‘‘ का चुनाव के साथ-साथ तहसील स्तर पर रेवाडी गुड़गाँवा, नूह,
पलवल बल्लभगढ़ एवं पटौदी स्टेट की ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण सभाओं का गठन हुआ ।
24 व 25 मई 1941 को ‘‘ अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण महासभा का अगला अधिवेषन बड़ौत (मेरठ) में पं0 जोतराम जी के दौरे के परिणाम स्वरूप हुआ । इस अधिवेषन में मेरठ जिले की सभा का
चुनाव हुआ जिसके सभापति बाबू भुल्लनसिंह व मंत्री पं0 हरस्वरूप पटवारी - शोभापुर चुने गये ।
26-27 व 28 मई 1941 को जोधपुर में ब्यावर ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण नवयुवक संघ‘‘ की आरे से ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण‘‘ जाति के नाम का प्रचार कार्य हुआ जिसमें मास्टर गंगादास, पं. जेठमल जी एवं
मास्टर गोविन्दराम जी ने विषेष सहयोग किया । इसी समय पानीपत (हरियाणा) में धर्मषाला महाजनान् में पं0 नानग राम जी की अध्यक्षता में अधिवेषन हुआ जिसमें लगभग 600 सदस्यों ने भाग लिया ।
इस अधिवेषन ने पानीपत जिले की वैष्णव ब्राह्मण सभा का गठन हुआ जिसमें स्व. चन्दगी राम, अगवानपुर (सेनापत प्रधान), पं. घीसाराम -पानीपत (मंत्री) चुने गये । जनवरी 1942 में
‘‘ वैष्णव ब्राह्मण‘‘ पत्रिका के नये बोर्ड का गठन हुआ जिसमें कोषाध्यक्ष वैद्य रामस्वरूप जी, शाहदरा, दिल्ली को बनाया । 7 नवम्बर 1943 को ‘‘ अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण महासभा‘‘
के महमंत्री श्री भगवती प्रसाद ने श्री घीसूलाल दिवाकर अजमेर को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण‘‘ पत्र के नये बोर्ड के गठन में अब इस पत्र का निकालना सम्भव नहीं है अगर आप इसे
अजमेर प्रान्त से निकालना चाहें तो बड़ी खुषी से निकाल सकते है ।‘‘ इसी समय अजमेर मंे श्री गंगादास दिवाकर व श्री घीसूलाल दिवाकर के प्रयासों से ‘‘ वैष्णव मार्तण्ड‘‘ का प्रकाषन हुआ ।
वर्ष 1948 में ‘श्री चतुर्थ सम्प्रदाय वैष्णव ब्राह्मण समाज‘‘ के नाम से न्याति भवन (34 फुट बाई 64 फुट) गुलाब सागर, जोधपुर में खरीदा गया जिसके प्रेरणा स्त्रोत स्व. जगदीष जी, कनकदास
जी , रामप्रताम व चैनराम जी आदि रहे, जो वैष्णव ब्राह्मण समाज जोधपुर का मुख्यालय है तथा जहां श्री राजेन्द्र प्राथमिक विद्यालय चल रहा है।
वर्ष 1952 में जोधपुर में ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण समाज‘‘ की त्रैमासिक पत्रिका ‘‘ वैष्णव संदेष ‘‘ का प्रकाषन प्रारम्भ हुआ । जिसे वर्ष 1953 में मासिक किया गया ।
3,4 व 5 जून 1953 को कुचावन की हवेली जोधपुर में ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण समाज‘‘ का अखिल भारतीय चैथा अधिवेषन हुआ इसका उदघाटन बाझा कुड़ी के महन्त श्री रामदास दिवाकर ने किया । सम्मेलन की अध्यक्षता श्री भगवानदास महीदपुर स्टेट (इन्दौर) ने की और महिला सम्मेलन आयोजन भी हुआ । इसके आयोजन में श्री महेन्द्र दत्त आगरा, एन.बी. निर्वाणी महीदपुर एवं श्री बी.एन. आलोक आदि रहे । इसी कालाविध में उदयपुर वैष्णव ब्राह्मण सम्मेलन 1954 व जामनगर सम्मेलन 1954 भी हुए ।
इस प्रकार 1925 से 1954 तक अपने समाज के संगठन ‘‘ वैष्णव ब्राह्मण‘‘ जाति के नाम से दिल्ली, राजस्थान, म.प्र., हरियाणा, उत्तरप्रदेष व गुजरात में स्थापित हुए व उनके भव्य आयोजन व बैठकें हुई तथा समितियों के चुनाव हुए व उत्पत्ति विषयक पुस्तक प्रकाषित की गई एवं चार सामाजिक पत्रिकाओं का प्रकाषन भी हुआ अतः यह 25 वर्ष के प्रारम्भिक वर्ष समाज की रजत जयन्ती के रूप में सामाजिक एकता के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे ।
वर्ष 1955 से 1970 तक वैष्णव ब्राह्मण समाज के सामाजिक संगठनों की गतिविधियां प्रायः नगण्य रही । वर्ष 1960 के लगभग छतीसगढ़ श्री वैष्णव महासभा, (रायपुर) ने अपने क्षेत्र में गतिविधियां प्रारम्भ की । दिल्ली में 1965 से पुनः सामाजिक गतिविधियां जागृत हुई स्वजाति बन्धुओं में सम्पर्क बढ़ने लगा तथा क्षेत्रीय समितियां गठित की गई जिसके फलस्वरूप वर्ष 1971 में संगठन की रूपरेखा बनी । यह संगठन ‘‘ भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ‘‘ के नाम से समाज के सामने आया जिसका पंजीकरण वर्ष 1975 में श्री शान्ति प्रसाद के प्रयासों से हुआ साथ ही जनवरी 1975 से ‘‘ वैष्णव युग‘‘ पत्रिका का प्रकाषन भी प्रारम्भ किया गया। आगरा में भी 1968 से संगठन बना जिसके प्रयासों से ‘‘ वैष्णव ज्योति‘‘ नामक परिचय पुस्तिका प्रकाषित हुई श्री चतुः सम्प्रदाय वैष्णव समाज जोधपुर के नाम से जनवरी 1970 में एक प्लाॅट (32 फुट बाई 55 फुट) खरीदा गया जिस पर 16 अक्टूबर 1978 में निर्माण कार्य आरम्भ हुआ जिसमें सर्व श्री लक्ष्मीनारायण योगानन्दी, रामदास वैष्णव, जीवनदास , विषनदास, प्रेमदास, भैरोदास, गणेषदास, भीकमदास, जस्साराम, श्यामदास आदि ने सहयोग दिया ।
इस विश्राम गृह में 3 कमरे, एक हाॅल बनाया गया तथा बाद में 2 दुकानों का भी निर्माण हुआ । जोधपुर में ही दिसम्बर 1971 में वैष्णव छात्रावास हेतु एक प्लाॅट (32 फुट बाई 62 फुट) मसूरिया में खरीदा गया जिस पर 5 कमरे तथा एक बड़ा हाॅल बन चुका है जिसका सारा श्रेय स्व. महन्त श्री राधिका दास निम्बावत सिणली मण्डल को जाता है छात्रावास निर्माण में भूमिका श्री मोहनलाल जी. रामावत व श्री अम्बालाल जी की रही तथा व्यवस्था में भूमिका श्री एन.डी.निम्बावत एडवाकेट की रही ।
वर्ष 1972 के लगभग श्री गंगानगर स्वामी समाज ने संगठन सम्बन्धी प्रयास प्रारम्भ किये जिसके फलस्वरूप सभा व कार्यालय हेतु एक प्लाॅट आदर्ष टाकीज के पास खरीदा गया जिसमें वर्तमान में एक विषाल भवन, 5 कमरे और 22 दुकानों के साथ साथ एक मन्दिर बन चुका है ।
वर्ष 1975 में देष की राजधानी दिल्ली में ‘‘ भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ‘‘ का सम्पर्क विभिन्न प्रदेषों के स्वजाति बन्धुओं से बढ़ा जिसमें प्रमुखतः श्री के सी वैष्ण्णव (गुजरात), मनोहरलाल वैरागी, रतलाम (म.प्र.) श्री देवीचरण कोटा (राज0) हरिभाई गार्ड भावनगर (गुजरात) प्रो.जगदीष चन्द्र शर्मा (बम्बई), श्री दयाराम वैष्णव व श्री एन.डी.निम्बावत (दोनो जोधपुर) श्री रामानुजदास व श्री लखनदास वैष्णव (दोनो रायपुर), श्री रणछोड़ दास (झाबूआ), डाॅ विनोद नीरज (उज्जैन), श्री गंगाजल स्वामी, श्री चेतरराम स्वामी व सोमदत स्वामी (तीनों श्री गंगानगर), श्री मोहनदास जालना (महाराष्ट्र), डाॅ. गुनासागर दास व रधुनाथदास (दोनो उड़ीसा), श्री नत्थीलाल शर्मा (भरतपुर), श्री प्रीतमसिंह (मुरादनगर), डाॅ डी.डी. नीमावत (जयपुर), श्री रामनिवास शर्मा (अलवर), श्री पीताम्बर दास (कटनी), श्री पी.एस. दास एडवोकेट (जबलपुर), डाॅ मनोहर उद्धव (उज्जैन), श्री एन.एन. वैष्णव (बम्बई), श्री निवास शास्त्री (जागूवास अलवर), श्री रामदास व श्री भगवान वैष्णव (उदयपुर), श्री प्रेदास व चरण दास जी (अबोहर), श्री घीसूलाल दिवाकर (अजमेर) आदि हैं । इस संगठन के सलाहकार के रूप में डाॅ हरिवैष्णव (दिल्ली) ने 1975 में भूमिका अदा की, तथा वर्ष 1976 में इस संगठन ने सर्वश्री जगमोहन कौषिक (दिल्ली), रविदत्त कौषिक (दिल्ली), हरिषचन्द्र जी (दिल्ली), एन.एन. वैष्णव (बम्बई) व सी.के. सेठ (अहमदाबाद), को संरक्षक सदस्य बनाया । आगे इस संगठन भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ का स्वरूप व्यापक होता गया जिसके फलस्वरूप नागदा सम्मेलन 1976, बम्बई सम्मेलन 1976, संभलपुर (उड़ीसा) सम्मेलन 1977 तथा आगरा सम्मेलन 1979 में सभी भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ के तत्ववाधान में आयोजित हुए जो सफल हुए । संघ के संविधान निर्मात्री समिति की बैठक डाॅ. हरिवैष्णव की अध्यक्षता में दिल्ली में 1977 में धर्मभवन में हुई इस समिति के महासचिव सागर दत्त कौषिक (दिल्ली) तथा सचिवों में श्री शान्ति प्रसाद, श्री के.सी. वैष्णव, श्री मनोहरलाल (रतलाम) व श्री हंसराम शर्मा (सुमरेपुर-पाली) थे तथा प्रत्येक प्रदेष से दो-दो प्रतिनिधियों ने इस समिति में भाग लिया । वर्ष 1971 से 1979 तक श्री रामानन्द शर्मा (दिल्ली) इस संघ के अध्यक्ष रहे तथा आगरा सम्मेलन में श्री एन.एन. वैष्णव (बम्बई) को इस संघ का अध्यक्ष बनाया गया । 1979 से 1982 तक इस संघ की तीन कार्यकारिणी बैठकें आयोजित की गई जो क्रमषः दिल्ली, कटनी और बम्बई में हुई । वर्ष 1982 के लगभग इस संघ के अध्यक्ष श्री एन.एन. वैष्णव ने ‘‘ अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ, बम्बई‘‘ नाम से नया संगठन खड़ा कर लिया । इस प्रकार समाज में पुनः विभाजन प्रक्रिया प्रारम्भ हुई ।
इस प्रकार एक समानान्तर संस्था बम्बई में बनी । इससे सम्पूर्ण समाज बंट गया । जिसके फलस्वरूप 1982 में भोपाल सम्मेलन, 1986 में उदयपुर सम्मेलन, 1990 में हरिद्वार सम्मेलन, 1994 में द्वारिका सम्मेलन, 1998 में रामेष्वरम् सम्मेलन, 2002 में जगन्नाथपुरी सम्मेलन, 2006 में उज्जैन सम्मेलन व 2010 में सांवलिया (मण्डफिया जिला चितौड़) सम्मेलन सेवा संघ (बंबई) द्वारा आयोजित किये गये । इसी अवधि में बड़खल झील (फरीदाबाद) सम्मेलन, बदरपुर (दिल्ली) सम्मेलन, 1990 में आगरा सम्मेलन, 1994 में मथुरा सम्मेलन भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ, दिल्ली द्वारा सफलतापूर्वक आयेजित किये गये । भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ, दिल्ली द्वारा हर वर्ष अपना स्थापना दिवस समारोह 2 अक्टूबर को मनाता आ रहा है जिसमें देष के सुदूर भागों से वैष्णव बन्धु आते हैे तथा अपने विचार व्यक्त करते हैं ।
भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली ने वैष्णव समाज को जोड़ने के लिए एक सेतु का कार्य किया है। वह देष के समस्त वैष्णव समाज की एकता का पक्षधर रहा है इस अवधि में समाज भवन निर्माण व छात्रालय निर्माण हेतु निर्माण युग का प्रारम्भ हुआ ।
वर्ष 1987 में कोटा में (22 मार्च) श्री वैष्णव ब्राह्मण समाज भवन (छात्रावास) निर्माण समिति का गठन हुआ जिसके प्रयासों से अक्टूबर 87 में 100 फुट बाई 150 फुट के एक भूखण्ड का आंबटन हुआ जिसमें स्व. देवीचरण जी, श्री देवीदास (डाबी), श्री प्रद्युमन कुमार, श्री प्रभुलाल जी (छावनीकोटा), श्री राधाकिषन शर्मा, श्री हरिषचन्द्र जी आदि का सराहनीय योगदान रहा । 3 गायत्री शक्ति पीठ के पास, विज्ञान नगर, कोटा स्थित इस भवन में कुल 14 कमरे मय बाराम्दे 5 शौचालय, 6 स्नानघर, 2 पेषाबघर व बीच में 27 फुट बाई 64 का हाल बना हुआ है श्री जेठमल निम्बावत हैदराबाद ने एक ट्यूबवेल का निर्माण करवाया । इसमें श्री देवीदास (डावी) व श्री राधाकृष्ण शर्मा (गुमानपुरा) का अनुदान व सहयोग सराहनीय रहा है ।
वर्ष 1987 में ही आंध्रप्रदेष वैष्णव समाज संघ की स्थापना हुई जिसमें श्री जेठमल निम्बावत का योगदान सराहनीय रहा । 4 वर्ष की अवधि में हैदराबाद व सिकंदराबाद के सभी वैष्णव बन्धुओं को सदस्य बना लिया तथा समाज भवन हेतु एक भूखण्ड आगापुरा में क्रय किया गया ।
इसी बीच भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ के तत्ववाधान में, समाज के सभी संगठनों को प्रतिनिधित्व देकर संघात्मक रूप से एक मंच पर एकत्र करने, उनके बीच सहयोग एवं सहकार बढ़ाने तथा वैष्णव समाज के प्रबुध्दजनों, बुद्वि जीवियों व सक्रिय कार्यकर्ताओं का सहयोग व सेवाएं समस्त वैष्णव समाज को उपलब्ध कराने के उद्देष्य से वर्ष 1990 में वैष्णव समाज प्रगतिषील मंच की स्थापना, श्री आर.के. शर्मा एडवोकेट गुड़गांवा, हरियाणा के प्रयास से की गई। मंच की प्रथम बैठक । अक्टूबर 1990 को आगरा में हुई जिसमे प्रथम अध्यक्ष स्व. श्री देवीचरण (कोटा) चुने गए । इसमें रामानुजदास (रायपुर), श्री अम्बालाल सीताराम भाई (अहमदाबाद), श्रीमती कमला वैष्णव (रायपुर) तथा श्री विजयन्त वैष्णव एडवोकेट (दिल्ली) के संयोजन में समितियां गठित की गई तथा मंच द्वारा नीति निर्देषक तत्वों की रूपरेखा बनाई गई । मंच की दूसरी बैठक। अक्टूबर 1994 को मथुरा (उ.प्र.) में हुई जिसका एक विषेष सन् अध्यक्ष स्व. श्री देवीचरण जी (कोटा) की स्मृति में आयोजित किया गया तथा स्व. श्री श्रीनिवास शास्त्री (जागूवास अलवर) स्व. श्री हंसराम जी (सुमेरपुर-पाली), स्व. महन्त श्री नरसिंहदास ‘बापूजी‘ (भूलेष्वर बम्बई) तथा स्व. श्री गंगादास दिवाकर (अजमेर) को समर्पित किया गया । इस अवसर पर भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली के संरक्षक श्री मनोहर लाल हरिव्यासी द्वारा विधवाओं को सिलाई मषीनें वितरित की गई ।
तत्पष्चात् 2 अक्टूबर 1995 को भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली का स्थापना दिवस समारोह गौषाला धर्मषाला शाहदरा में सम्पन्न हुआ जिसमें श्री मनोहर लाल हरिव्यासी (फरीदाबाद), श्री बुद्धन स्वामी तथा श्री विजय स्वामी फरीदाबाद के आग्रह पर संघ का आगामी स्थापना दिवस समारोह व वैष्णव प्रगतिषील मंच का प्रतिनिधि सम्मेलन 1 व 2 अक्टूबर 1996 को फरीदाबाद में आयोजित करने का निर्णय लिया गया ।
1 एवं 2 अक्टूबर 1996 को फरीदाबाद के उद्यमियों के सहयोग तथा श्री मनोहरलाल जी हरिव्यासी के विषेष योगदान से श्री बासुराम लखानी कम्युनिटी सेन्टर, सेक्टर 2, एन.आई.टी. फरीदाबाद में वैष्णव प्रगतिषील मंच का प्रतिनिधि सम्मेलन व भारतीय वैष्णव ब्राह्मण संघ दिल्ली का स्थापना दिवस समारोह आयोजित किया गया है।