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मरूस्थल का प्रवेष द्वार जोधाणा (जोधपुर) इतिहास के पृष्ठों पर सुनहरी अक्षरों में लिखी गई शौर्य व पराक्रम की गांथायें हमें आज भी रोमांचित कर देती है यहां राव जोधा से बलिष्ठ मानसिंह, तखतसिंह जैसे गुणग्राही, जसवन्तसिंह, अमरसिंह जैसे बहादुर, दुर्गादास जैसे स्वामिभक्त, सरप्रताप, उम्मेदसिंह जैसे दूरदर्षी एवं विवेकषील निर्माता, जयनारायण व्यास जैसे क्रान्तिकारी और शैतानसिंह जैसे परमवीर नर श्रेष्ठोें की जन्म भूमि है यहां की बालू मिट्टी आसानी से गर्म नहीं होती और जब होती है तो दिल्ली के तख्ते ताऊस को अपनी तपिष से झूलसा देने की सामथ्र्य रखती है । वैसे तो जोधपुर शहर पत्थरों का शहर है लेकिन यहां लोगों का दिल मोम की तरह है जोधपुर की आबोहवा, खान-पान भाषा सहज अपने मेहमानों को मोह लेती है ऐसे शहर में जन्म लेना शौभाग्य एवं गर्व की बात है, प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं पर, अपने परिवार पर, अपने समाज पर, अपने गांव/षहर एवं देष पर गर्व होना चाहिये क्योंकि इन्हीं से व्यक्ति का अस्तित्व कायम रहता है जब कोई अपरिचित हमसे मिलता है और हमारा परिचय चाहता है तो निष्चित रूप से हम अपने नाम के साथ जाति (उपनाम) से अपना परिचय कराते है, साथ ही अगला व्यक्ति हमसें गांव का नाम पुछता है तो हम अपने गांव का नाम बताते है यानि कि मुख्य रूप से जाति एवं निवास स्थान हमारी पहचान का आधार है जाति एवं निवास स्थान व्यक्ति को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रखते है और संगठन वही जिन्दा रहता है जिसका इतिहास हो । इतिहास का सीधा सा अर्थ उस अविध से है जिसमें कुछ हुआ है और ऐसा इतिहास जब लिपिबद्व हो जाता है तो वह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बन जाता है और यह दस्तावेज समाज के लिए वर्षो वर्ष उपयोगी साबित हो सकता है और आने वाली पीढि़यों को अपने समाज संगठन की गतिविधियों की जानकारी होने से उनमें भी जागृति एवं चेतना पैदा होती है । वैसे तो वैष्णव समाज की आज तक अलग-अलग स्थानों से सैंकड़ो स्मारिकाऐं इस उदद्ेष्य हेतु प्रकाषित हो चुकी है और यह क्रम चालू भी है एक सफल स्मारिका / विवरणिका वही होती है जिसकी सामग्री इतनी उपयोगी रहे कि वर्षो - वर्ष समाज के लोग उसे अन्य कीमती सामानों की तरह अपने पास सुरक्षित रखें । जोधपुर से सर्व प्रथम 1990 में वैष्णव समाज की एक स्मारिका का प्रकाषन किया गया था जिसका विमोचन सेवा संघ के तृतीय राष्ट्रीय अधिवेषन के दौरान हरिद्वार में किया गया । उसके पश्चात् बर्तन व्यवस्था समिति, जोधपुर द्वारा एक संक्षिप्त सीमित सामग्री वाली स्मारिका का प्रकाषन किया गया और तत्पष्चात् 2005 एवं 2007 में दो और स्मारिका का जोधपुर से प्रकाषन किया गया और अब एक बार फिर यह स्मारिकों आपके हाथों में है वर्ष 1990 की स्मारिका की आज भी जबरदस्त मांग है 1990 की स्मारिका मेरे सम्पादन में ही तैयार की गई थी और आज एक बार फिर यह स्मारिका मेरे सम्पादन में तैयार हुई है इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ कि मुझे इस रूप में समाज की सेवा का आप लोगों ने अवसर दिया है इसलिए मैं आप सभी का हृदय से आभारी हूँ तथा आपको इसके लिए धन्यवाद देता हूँ । | |
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N.D.Nimbawat,
Gaurav Nimbawat
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