वैष्णव

भगवान विष्णु के श्री मुखसे अपने भक्तों को सम्बोधित करने हेतु जिस शब्द का प्रयोग हुआ है वह शब्द है वैष्णव यानि कि जो भगवान विष्णु का भक्त ह,ै विष्णु की पूजा, उपासना, अराधना करने वाला है वह वैष्णव है । जिसका मन स्वच्छ हो, किसी के प्रति राग-द्धेष न हो, जिसका हृ्रदय विषाल हो, जो जात-पात, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब में भेद न करते हुऐ समदृष्टि से देखे, जो परोपकारी हो, दुसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर मदद करे, ऐसे व्यक्ति ही भगवान विष्णु के प्रिय होते है । हमारे वेदों में, पुराणों में (विष्णु पुराण, षिव पुराण) उपनिवेषों में तथा विभिन्न टिकाओं में वैष्णव शब्द इसी संदर्भ में आया है इनमें जिस रूप में वैष्णव से सम्बोधित किया गया है उससे वैष्णव शब्द के अर्थ को समझने में कोई मुष्किल नहीं है ।

नरसी भक्त के इस भजन में वैष्णव को बहुत ही सुन्दर तरीके से परिभाषित किया है:-

वैष्णव जन तो तेने कहिऐ
पीड़ पराई जाणे रे ।
पर दुखे उपकार करे,
मन अभिमान न आणे रे ।।

                वैष्णव जन तो तेने कहिऐ.....

सकल लोक मां सबहु ने वन्दे,
निन्दा न करे केणी रे ।
वाच काच मन निष्चल राखे,
धन-धन जननी वेणी रे ।।

                वैष्णव जन तो तेने कहिऐ.....

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी,
पर स्त्री जेने मात रे ।
जिव्हा थकी असत्य न बोले,
पर धन न झाले हाथ रे ।।

                वैष्णव जन तो तेने कहिऐ.....

मोह माया व्यापे नहीं जेने,
दृढ़ वैराग्य तेने मानमा रे ।
राम नाम सू तानी लागी,
सकल तीरथ तेने तनमा रे ।।

                वैष्णव जन तो तेने कहिऐ.....

वण लोभी ने कपट रहित छे,
काम क्रोध निवारिया रे ।
भणे नरसियो तेनु दरसन करता,
कुल इकोतर तारिया रे ।।

                वैष्णव जन तो तेने कहिऐ.....

इस भजन में वैष्णव के सभी गुण उजाकर होते है इसरूप में स्पष्ट है कि वैष्णव ऐसी विचारधारा है जिसका लोग सदियों से अनुसरण कर अपने जीवन में उतारते ह,ै ऐसे व्यक्तियों के समुदाय को सम्प्रदाय की संज्ञा दी गई है अतः वैष्णव एक सम्प्रदाय है ।

वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों के जीवन चरित्र, उनका आचरण उनका भगवान विष्णु के प्रति सम्पर्ण से सम्बन्धित परम्पराऐं जिसे हम वैष्णव धर्म समझते है, मानते है तथा कहते है। अतः वैष्णव एक धर्म भी है धर्म का सीधा सा अर्थ अपने कŸाव्यों की पालना से है। वैष्णव सम्प्रदाय के सम्प्रदाचार्यो, द्धाराचार्यो की परम्पराओं के लोगों द्वारा अपनी पहचान वैष्णव के रूप में देने का सिलसिला पिछले करीब 100 वर्षो से चला आ रहा है तथा वर्तमान में वैष्णव शब्द से एक जाति विषेष की पहचान बन गई है और हम लोग अपनी जाति पूछने पर जहां पहले साध (साद) सन्त, बाबा, स्वामी, वैरागी/बैरागी, आचार्य, बताते थे वहीं आज वैष्णव के रूप में अपनी जाति बताने लगे है हालांकि अब भी अलग-अलग क्षैत्रों में, सन्त, बाबा, स्वामी, वैरागी/बैरागी, आचार्य शब्द जाति के प्रतीक बने हुए है लेकिन ये सभी भगवान श्री विष्णु के उपासक होने, वैष्णव सम्प्रदाय के होने तथा वैष्णव धर्म को मानने वाले है इसमें कत्तई संदेह नहीं है तथा वैष्णव जाति के रूप वैष्णव शब्द की जो पहचान बनी है उसका जो अस्तित्व बढ़ा है इस सत्य पर किसी को संदेह नहीं है अतः वैष्णव एक जाति भी है ।

आने वाले समय में वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी, वैष्णव धर्म के उपासक जो विभिन्न क्षैत्रों में/ राज्यों में साध (साद), सन्त, बाबा, स्वामी, बैरागी, आचार्य, इत्यादि जाति सूचक नामों के कारण अलग-थलग पडे़ है, संगठित नहीं है । केवल वैष्णव शब्द ही एक ऐसा क्रान्तिकारी शब्द होगा जो सभी वैष्णवों को संगठित करने में मददगार होगा ।

Ten Avatars of Vishnu

Matsya
Kurma
Varaha
Narasimha
Vamana
parashurama
Lord Rama
Balarama
Lord krishna
Kalki

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